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रविवार, 13 जून 2010

स्वीकार है मुझे लेकिन ......


 अब आगे पढ़िये ..... 

दिन भर की तू-तू मैं-मैं अब रात के सायों को भी छूने लगी थी। सास-ननद के फैशन बढ़ते जाते हैं, प्रिया की किताबों में सिनेमा की टिकटें और किसी न किसी लड़के की फोटो अक्सर पाई जाती है। संतोष उसकी शिकायत अपने पति से करती है तो उसे जाहिल गँवार कहा जाता है। और अब तो राहुल ने भी देर से  आना शुरू कर दिया है। शराब के नशे में धुत हो कर संतोष के साथ बर्बरता का व्यवहार एक नियम बन चुका है।

उधर प्रिया जिस लड़के के चक्कर में है वो प्रिया के साथ काफी दूर तक निकल चुका है। एक दिन प्रिया उससे विवाह की बात छेड़ती है, तो वह उसे कहता है अरे यार लाईफ एंजॉय करो शादी-वादी तो होती रहेगी। और उसी दिन राहुल अपनी बहन प्रिया को एक रेस्टोरेंट में यूँ झगड़ते हुये देख लेता है जो वह प्रिया के पास जाता है और उसे डाँटता है। क्योंकि वह उस लड़के के चाल चलन को भली भांति जानता है। उसके कई लड़कियों के साथ सम्बन्ध हैं। राहुल प्रिया को घर लाता है। वह गुस्से से तमतमाते हुये कहती है कि आज जब मैं जिन्दगी के इस सफर में बहुत आगे निकल आई हूँ तब आपको होश आया है। और फिर मुझे समझाने वाले आप कौन होते है। आप पहले अपने आप को सुधारिये फिर मुझे कहिये। राहुल को बहुत गुस्सा आता है वह सोचता है कि जिस बहन की उसने हर ज़िद पूरी की वही पूछती है कि आप कौन होते हो? राहुल एक कस के तमाचा जड़ देता है प्रिया के गाल पर।  और प्रिया भी गुस्से से आग बबूला होकर हाथ उठा देती है और कहती है कि भईया थप्पड़ को मैं भी मार सकती हूँ, और अपने कमरे में चली जाती है।

राहुल को प्रिया की बात काँटे की तरह चुभ जाती है वह वहाँ से तुरंत चला जाता है और एक पार्क में आकर बैठ जाता है। घण्टों बैठा रहने के बाद रात को घर पहुँचता है।  संतोष उसका इंतजार कर रही है वह उससे बात किये बिना बैडरूम में जा कर लेट जाता है। संतोष रोज की तरह उसके जूते उतारती है पर राहुल आज नशे में नहीं था फिर भी वह चुपचाप सोने का बहाना करके लेटा रहता है।

आज वह संतोष के बारे में सोचता है कि इतने दु:ख सहने के बावजूद वह निरंतर उसी तरह से सेवा करती जा रही है। उसके चेहरे पर शिकन का लेश मात्र भी निशान नही है। आज राहुल ने पी नही है न इसीलिये वह ये सब देख पाता है। संतोष जब उसके पास आकर पलंग के एक कोने में लेट जाती है पर आज राहुल अन्दर ही अन्दर रो रहा है। सोच रहा है कि इतने अत्याचार के बावजूद संतोष शांत है और जिसे उसने सबसे ज्यादा प्यार किया बचपन से उसकी हर ख्वाहिश पूरी की उसने आज जरा सा डांटने  पर अपने बड़े भाई पर हाथ उठा दिया। अब उसकी हिम्मत नही हो रही है कि वह उससे बात भी करे। रात इसी तरह करवटें बदलते-बदलते बीत जाती है। 

प्रकाश टाटा आनन्द 

शेष अगले सप्ताह .....



8 टिप्‍पणियां:

कामिनी टाटा ने कहा…

कहानी काफी रोचक है इसे जारी रखिये। पिछले सप्ताह शेष भाग दिखाई नहीं दिया। अगले सप्ताह इंतज़ार रहेगा....

Ra ने कहा…

ham to abhi to aasmaan me swachhand ghoom rahe hai ...kewal tippani hi padh aur bhej paa rahe hai ,,,,,( kambhakt mobile waale itnai hi suvidha de rahe hai) ,,,achhe bhale agar jameen par utare to aapki rachna fir se padhne ka prayaas karenge ,,,tippani bhi tabhi bhej paayenge,,,,abhi lag raha hai ki aapki rachna me kuchh to khaas hai ....????????////

Unknown ने कहा…

नमस्ते,

आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।

दिलीप ने कहा…

rochak...

Jandunia ने कहा…

सार्थक पोस्ट

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

Unknown ने कहा…

खुद्दार एवं देशभक्त लोगों का स्वागत है!
सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले हर व्यक्ति का स्वागत और सम्मान करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है। इसलिये हम प्रत्येक सृजनात्कम कार्य करने वाले के प्रशंसक एवं समर्थक हैं, खोखले आदर्श कागजी या अन्तरजाल के घोडे दौडाने से न तो मंजिल मिलती हैं और न बदलाव लाया जा सकता है। बदलाव के लिये नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है।

अतः समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है। सरकार द्वारा जनता से टेक्स वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना प्रशासन ने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा व्यक्ति से पूछना चाहता हूँ कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट अफसरों के हाथ देश की सत्ता का होना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-"भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस संगठन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

Unknown ने कहा…

कहानी अछी है इस पर एक टीवी सिरियल बनाया जा सकता है कहानी बडी होनी चाहिऐ।