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शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा जी को श्र्द्धांजलि


आज जब मैने श्री विरेन्द्र शर्मा जी के फेसबुक से ये जाना कि मेरे प्रिय और आदर्श लेखक श्री ओम प्रकाश शर्मा जी की आज पुण्य तिथि है तो मन विह्वल हो उठा। मैं बचपन से ही उनकी रचनाये पढ्ती रही हूँ. मैं नहीं जानती कि कब किस उम्र में वो मेरे आदर्श बन गये। आज मैं जो कुछ भी लिखती हूँ उसमें शर्मा जी के ही विचारों की झलक होती है। विरेन्द्र शर्मा जी मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि स्वीकार करें। उनकी कमी तो सदा रहेगी ।
मैंने यह कविता अपने पिता की याद मैं लिखी थी जो आज मैं स्वर्गीय ओम प्रकाश शर्मा जी को समर्पित करती हूँ। मेरे श्रद्धासुमन .......


कभी कहीं कुछ ऐसा घट जाता है
लहर जिससे मिलने आती है
वो किनारा ही हट जाता है

मीठी मधुर ठंडी पवन
झकझोरती है तन मन
वो ही उठा कर आग
सब जला डालती है
एक मंदिर झर जाता है
एक बाग उजड़ जाता है । लहर जिससे .................

कोई निकटतम व्यक्ति अपना
एक स्वप्न बन जाता है
और फिर नींद नहीं आती
करवट बदल बदल कर
समय, असमय कट जाता है
वक्त बदल जाता है । लहर जिससे .....................

शाम की मुंडेर पर
बैठा नीरस सूरज
अचानक डूब जाता है
एक अटूट विश्वास
सा जम जाता है
तब दीपक अचानक
बुझ जाता है । लहर जिससे ...................

कभी-कभी हृदय
भावनाओं से
इतना भर जाता है
कि असह्य हो जाता है
जहाँ भी जाओ
हर आदमी अपना
साथी नजर आता है । लहर जिसके .................

-------प्रकाश टाटा आनन्द

उपरोक्त कविता कि रचना 18.10.1995 में मेरे हृदय से निकली । मन व्याकुल था और तभी एक पुस्तक में किसी की रचना पढी "कभी कहीं कुछ ऐसा घट जाता है नदी जिसके भरोसे होती है वो किनारा ही कट जाता है"
बस मेरा मन भी व्यह्वल्  हो गया पिता को बिछ्ड़े अभी एक महीना ही हुआ था और क्या लिखू .........