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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

हरसूँ प्रकाश है....

मैं एक नई दुनिया की बात करती हूँ
हरेक राह के, हर मोड़ से गुजरती हूँ

जश्न मनाती हूँ डूबते हुए सूरज का,
उसे भी हर दिन सलाम करती हूँ

रात भर दहकती हूँ दिये की तरह
तलाश में सुबह की मैं भटकती हूँ

कभी नूर सी चमकती हूँ सितारों में
कभी खुश्बू-ए-गुल को तरसती हूँ

खुद पे नाज करती हूँ देख अक्स अपना
पर आरसी की जुबान कब समझती हूँ

तू मुझे अक्सर वहीं खडा नजर आता है
जब मैं  अपनी हस्ती पे नाज करती हूँ ।

बिना चाँद के हरसूँ “प्रकाश” छाया है
तेरी सूरत से लेकर नूर मैं चमकती हूँ

------- प्रकाश टाटा आनन्द