© लेखक की लिखित अनुमति के बिना इस ब्लाग में छ्पी किसी भी कविता, कहानी अथवा लेख का कहीं भी और किसी भी प्रारूप में प्रयोग करना वर्जित है।

रविवार, 21 अगस्त 2011

एक छोटी सी, पर बहुत बड़ी बात......


19 अगस्त 2011
एक छोटी सी, पर बहुत बड़ी बात......
आज क्या कई दिनों से आफिस में काम करने का माहौल बन ही नहीं पा रहा है। जिसे देखो केवल अन्ना की ही बात कर रहा है। इंटरनेट पर भी टी.वी लाईव में पल पल की खबरें देखी जा रही हैं।

आज दोपहर के 1 बजे थे। हम सब खाना खाकर हटे ही थे कि सड़्क से आवाजे आने लगी, उत्सुकतावश हम भी कोपरनिकस मार्ग पर आ गये। सुना था कि अन्ना राजघाट से इंडिया गेट आएंगे। बस हम भी चल दिये इंडिया गेट की ओर। मंडी हाउस से पैदल मार्च करते हुए इंडिया गेट पहुँच ही थे कि झमाझम बारिश होने लगी। सभी लोग पेडों के नीचे शरण लेने लगे। हम भी वहीं खडे हो गये। 10 – 15 लडके युवा लडके भी खडे थे। वही पर एक पुलिस का बेरिकेट गिरा पडा था। बारिश से बचने के लिये लोगो की संख्या बढ्ती जा रही थी। तभी एक लडका उस बेरिकेट पर चढ़ गया, पर ये क्या उसके साथी उसके पीछे पड गये अबे ये क्या कर रहा है, ये सरकारी सम्पत्ति है। अगर ये टूट गया तो ? अन्ना ने कहा है कि हमें किसी सरकारी सम्पत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाना हैं। बस क्या था जो भी उस बेरिकेट पर चढा था, सभी उतर गये।

ये है अन्ना की फौज !!! ये वही जवान हैं अपनी जवानी के जोश में नाक में दम कर देते हैं, कालेज में हड़ताल हो तो बसे जला डालते हैं, यहाँ अन्ना तो उन लडकों को नहीं देख रहे थे । पर मजाल है कि कोई भी लडका कुछ शैतानी करता दिखाई दे। इसे क्या कहेंगे आप, जरा सोचिये?
 ·  · Share · Delete

1 टिप्पणी:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

प्रकाश टाटा आनन्द जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

विलंब से ही सही …
♥ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥

बहुत सुंदर है आपका ब्लॉग … शायद पहली बार ही पहुंचा हूं । आते रहना पड़ेगा अब … :)

अन्ना का भारतीय जनमानस पर जो आश्चर्यजनक प्रभाव बन गया है , उसकी एक झलक आपने बहुत ख़ूबसूरती से अपनी इस प्रविष्टि में दी है … साधुवाद ! बहुत सुंदर !!

# …ताज़ा घटनाक्रम के अनुसार आज रात अन्ना की गिरफ़्तारी संभव है …

इस सरकार के लिए मैंने लिखा है -
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर आइए न …

मंगलकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार