एक लम्हा कहीं, अपना सा मिले
एक लम्हा कभी, सपना सा लगे
यूँही पल-पल में गुज़र जाना स्वीकार है स्वीकार है मुझे
हर कदम पर ये हमने पाया है
हम सफर है जो अपना साया है
यूँ ही सायों में सिमट जाना स्वीकार है स्वीकार है मुझे
गर सितारों की चमक अधूरी है
रात रोशन हो क्या ज़रूरी है
यूँ ही जुगनूँ सा चमक जाना स्वीकार है स्वीकार है मुझे
एक शम्मां जली जलती ही रही
उससे रोशन रही दुनिया की गली
यूँ ही जल-जल के पिघल जाना स्वीकार है स्वीकार है मुझे
कोई तुझसा कहीं जहाँ में पाऊँगी
फिर से दुनिया में मैं लौट आऊँगी
यूँ ही मर-मर के
उबर जाना स्वीकार है स्वीकार है मुझे
मेरी चाहत गर, कहीं जाने से मिले
कभी फलक पर, कभी ज़मीन तले
यूँ ही चल-चल के भटक जाना स्वीकार है स्वीकार है मुझे
घनी पलकों के किनारों की नमी
तेरे कदमों को, रोक ले न कहीं
तेरा मुड़ मुड़ के पलट जाना स्वीकार है स्वीकार है मुझे
------------ प्रकाश टाटा आनंद (सर्वाधिकार)
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