बेसुध निद्रा में सोई थी
सपनों में मैं खोई थी
आकर मेरे सिरहाने पर
कोई रजनीगन्धा सजा गया
मन में सुगन्ध बसा गया, कोई रजनीगन्धा सजा गया....
तम की गहरी रात ढ़ली
उषा ने फिर बात कही
कानों में चुपके से आकर
कोई गीत मधुर बजा गया
मन में सुगन्ध बसा गया, कोई रजनीगन्धा सजा गया....
होंठों पर मुस्कान खिली
यूँ आई फिर नहीं टली
श्याम् सलौना पनघट पे आ
मुरली मधुर बजा गया
मन में सुगन्ध बसा गया, कोई रजनीगन्धा सजा गया....
चाहत को नई दिशा मिली
मन मन्दिर में कली खिली
अमृत धार पिला दर्शन की
भव सागर पार लगा गया
मन में सुगन्ध बसा गया, कोई रजनीगन्धा सजा गया....
-------- प्रकाश टाटा आनन्द